Ganesh Chaturthi, along with its religious aspect, is also a very economic event and is celebrated with a lot of grandiosity throughout India and Nepal. The festival commences with the cleaning and decoration of houses. Marvelous clay idols are constructed by artisan months before the festival begins.
Rituals of the festival include chanting slokas, mantras, devotional songs, Arti and so on. Arti is the circulation of an earthen lamp by the priest and it is done with utmost devotion to pay reverence to the deity. Modak and Karanji are the popular festival food. Modak is a preparation made of steamed rice flour parcels containing a stuffing of jaggery, desiccated coconut, and dry fruits. The other delicacies of this festival are Paavasam, Pedha, Badam Barfi, Sabudana, laddoo, Puliyodarai (tamarind rice) and so on. The festivities which include dances, theatrical performances, songs, bursting of crackers and so on, all come to an end with the immersion of Lord Ganesha idol in the holy river, lakes etc..
Ganesh Chaturthi significance: lies in worshipping the God of power and wisdom to invoke his blessings in order to attain spiritual knowledge, wisdom, and success in all endeavors. Ganesh Chaturthi is observed nationwide for prosperity and good fortune.

Ganesh Chaturthi also was known as Vinayaka Chaturthi is one of the important Hindu festivals celebrated throughout Nepal and India with a great devotion. This day is celebrated as the birthday of Lord Ganesh, the elephant-headed son of Lord Shiva and Goddess Parvati. Lord Ganesh is the symbol of wisdom, prosperity and good fortune.
Ganesh Chaturthi is celebrated on Shukla Chaturthi of the Hindu month of Bhadra (generally falls between August and September). This festival is celebrated by Hindus with a great enthusiasm. People bring idols of Lord Ganesh to their homes and do worship. The duration of this festival varies from 1 day to 11 days, depending on the place and tradition. On the last day of the festival, the idols are taken out in a colorful and musical procession and immersed traditionally in water.
As per Hindu mythology, Lord Ganesh is considered as "Vigana Harta" (one who removes obstacles) and "Buddhi Pradaayaka" (one who grants intelligence). This festival is very important for students, they worship Lord Ganesh to illumine their minds.
गणेश चतुर्थी मनाने का तरीका (How to celebrate Ganesh Chaturthi)
गणेश उत्सव को सामाजिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण माना जाता हैं क्यूंकि यह त्यौहार केवल घर के लोगो के बीच ही नहीं सभी आस पड़ोसियों के साथ मिलकर मनाया जाता हैं. गणेश जी की स्थापना घरो के आलावा कॉलोनी एवम नगर के सभी हिस्सों में की जाती हैं. विभिन्न प्रकार के आयोजन, प्रतियोगिता रखी जाती हैं, जिनमे सभी बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेते हैं. ऐसे में गणेश उत्सव के बहाने सभी में एकता आती हैं. व्यस्त समय से थोड़ा वक्त निकाल कर व्यक्ति अपने आस पास के परिवेश से जुड़ता हैं.
गणेश चतुर्थी व्रत का महत्व (Ganesh Chaturthi importance)
- जीवन में सुख एवं शांति के लिए गणेश जी की पूजा की जाती हैं.
- संतान प्राप्ति के लिए भी महिलायें गणेश चतुर्थी का व्रत करती हैं.
- बच्चों एवम घर परिवार के सुख के लिए मातायें गणेश जी की उपासना करती हैं.
- शादी जैसे कार्यों के लिए भी गणेश चतुर्थी का व्रत किया जाता हैं.
- किसी भी पूजा के पूर्व गणेश जी का पूजन एवम आरती की जाती हैं. तब ही कोई भी पूजा सफल मानी जाती हैं.
- गणेश चतुर्थी को संकटा चतुर्थी भी कहा जाता हैं. इसे करने से लोगो के संकट दूर होते हैं.
विनायक चतुर्थी व्रत का महत्व (Vinayaka Chaturthi importance)
- भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी के आलावा हर महीने की चतुर्थी का व्रत भी किया जाता हैं. जिसे विनायक चतुर्थी कहा जाता है.
- विनायक चतुर्थी को वरद विनायक चतुर्थी भी कहा जाता है. वरद का अर्थ होता है “भगवान से किसी भी इच्छा को पूरा करने के लिए पूछना”.
- जो इस उपवास का पालन करते हैं, उन भक्तों को भगवान गणेश ज्ञान और धैर्य के साथ आशीर्वाद देते हैं.
- बुद्धि और धैर्य दो गुण है, जिनके महत्व को मानव जाति में युगों से जाना जाता है. जो कोई भी इन गुणों को प्राप्त करता है, वह जीवन में प्रगति कर सकता है साथ वह अपनी इच्छा भी प्राप्त कर सकता है.
- विनायक चतुर्थी / गणेश चतुर्थी पर गणेश पूजा दोपहर के दौरान की जाती है जो हिन्दू कैलेंडर के हिसाब से मध्यान्ह होता है.
- गणेश चतुर्थी / विनायक चतुर्थी कथा
गणेश जी को सर्व अग्रणी देवता क्यूँ कहा जाता हैं ?
एक बार माता पार्वती स्नान के लिए जाती हैं. तब वे अपने शरीर के मेल को इक्कट्ठा कर एक पुतला बनाती हैं और उसमे जान डालकर एक बालक को जन्म देती हैं. स्नान के लिए जाने से पूर्व माता पार्वती बालक को कार्य सौंपती हैं कि वे कुंड के भीतर नहाने जा रही हैं अतः वे किसी को भी भीतर ना आने दे. उनके जाते ही बालक पहरेदारी के लिए खड़ा हो जाता हैं. कुछ देर बार भगवान शिव वहाँ आते हैं और अंदर जाने लगते हैं तब वह बालक उन्हें रोक देता हैं. जिससे भगवान शिव क्रोधित हो उठते हैं और अपने त्रिशूल से बालक का सिर काट देते हैं. जैसे ही माता पार्वती कुंड से बाहर निकलती हैं अपने पुत्र के कटे सिर को देख विलाप करने लगती हैं. क्रोधित होकर पुरे ब्रह्मांड को हिला देती हैं. सभी देवता एवम नारायण सहित ब्रह्मा जी वहाँ आकर माता पार्वती को समझाने का प्रयास करते हैं पर वे एक नहीं सुनती.
तब ब्रह्मा जी शिव वाहक को आदेश देते हैं कि पृथ्वी लोक में जाकर एक सबसे पहले दिखने वाले किसी भी जीव बच्चे का मस्तक काट कर लाओं जिसकी माता उसकी तरफ पीठ करके सोई हो. नंदी खोज में निकलते हैं तब उन्हें एक हाथी दिखाई देता हैं जिसकी माता उसकी तरफ पीठ करके सोई होती हैं. नंदी उसका सिर काटकर लाते हैं और वही सिर बालक पर जोड़कर उसे पुन: जीवित किया जाता हैं. इसके बाद भगवान शिव उन्हें अपने सभी गणों के स्वामी होने का आशीर्वाद देकर उनका नाम गणपति रखते हैं. अन्य सभी भगवान एवम देवता गणेश जी को अग्रणी देवता अर्थात देवताओं में श्रेष्ठ होने का आशीर्वाद देते हैं. तब से ही किसी भी पूजा के पहले भगवान गणेश की पूजा की जाती हैं.
गणेश जी को संकट हरता क्यूँ कहा गया ?
एक बार पुरे ब्रहमाण में संकट छा गया. तब सभी भगवान शिव के पास पहुंचे और उनसे इस समस्या का निवारण करने हेतु प्रार्थना की गई. उस समय कार्तिकेय एवम गणेश वही मौजूद थे, तब माता पार्वती ने शिव जी से कहा हे भोलेनाथ ! आपको अपने इन दोनों बालकों में से इस कार्य हेतु किसी एक का चुनाव करना चाहिए.
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तब शिव जी ने गणेश और कार्तिकेय को अपने समीप बुला कर कहा तुम दोनों में से जो सबसे पहले इस पुरे ब्रहमाण का चक्कर लगा कर आएगा, मैं उसी को श्रृष्टि के दुःख हरने का कार्य सौपूंगा. इतना सुनते ही कार्तिकेय अपने वाहन मयूर अर्थात मौर पर सवार होकर चले गये. लेकिन गणेश जी वही बैठे रहे थोड़ी देर बाद उठकर उन्होंने अपने माता पिता की एक परिक्रमा की और वापस अपने स्थान पर बैठ गये. कार्तिकेय जब अपनी परिक्रमा पूरी करके आये तब भगवान शिव ने गणेश जी से वही बैठे रहने का कारण पूछा तब उन्होंने उत्तर दिया माता पिता के चरणों में ही सम्पूर्ण ब्रह्माण बसा हुआ हैं अतः उनकी परिक्रमा से ही यह कार्य सिध्द हो जाता हैं जो मैं कर चूका हूँ. उनका यह उत्तर सुनकर शिव जी बहुत प्रसन्न हुए एवम उन्होंने गणेश जी को संकट हरने का कार्य सौपा.
इसलिए कष्टों को दूर करने के लिए घर की स्त्रियाँ प्रति माह चतुर्थी का व्रत करती हैं और रात्रि में चन्द्र को अर्ग चढ़ाकर पूजा के बाद ही उपवास खोलती हैं.
गणेश चतुर्थी / विनायक चतुर्थी व्रत पूजा विधि (Ganesh Chaturthi vrat and puja vidhi in hindi)
- भद्रपद की गणेश चतुर्थी में सर्वप्रथम पचांग में मुहूर्त देख कर गणेश जी की स्थापना की जाती हैं.
- सबसे पहले एक ईशान कोण में स्वच्छ जगह पर रंगोली डाली जाती हैं, जिसे चौक पुरना कहते हैं.
- उसके उपर पाटा अथवा चौकी रख कर उस पर लाल अथवा पीला कपड़ा बिछाते हैं.
- उस कपड़े पर केले के पत्ते को रख कर उस पर मूर्ति की स्थापना की जाती हैं.
- इसके साथ एक पान पर सवा रूपये रख पूजा की सुपारी रखी जाती हैं.
- कलश भी रखा जाता हैं एक लोटे पर नारियल को रख कर उस लौटे के मुख कर लाल धागा बांधा जाता हैं. यह कलश पुरे दस दिन तक ऐसे ही रखा जाता हैं. दसवे दिन इस पर रखे नारियल को फोड़ कर प्रशाद खाया जाता हैं.
- सबसे पहले कलश की पूजा की जाती हैं जिसमे जल, कुमकुम, चावल चढ़ा कर पुष्प अर्पित किये जाते हैं.
- कलश के बाद गणेश देवता की पूजा की जाती हैं. उन्हें भी जल चढ़ाकर वस्त्र पहनाए जाते हैं फिर कुमकुम एवम चावल चढ़ाकर पुष्प समर्पित किये जाते हैं.
- गणेश जी को मुख्य रूप से दूबा चढ़ायी जाती हैं.
- इसके बाद भोग लगाया जाता हैं. गणेश जी को मोदक प्रिय होते हैं.
- फिर सभी परिवार जनो के साथ आरती की जाती हैं. इसके बाद प्रशाद वितरित किया जाता हैं.
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